Mata Meladi Introduction : Small To Customize Marble Statue of Goddess at Rameshwaram Marble



                                                         

सतयुग की समाप्ति के समय दैत्य अमरूवा महान प्रतापी मायावी और वरदानी था। उसके अत्याचार से सृष्टि में हाहाकार मच गया, देवताओं के साथ महासंग्राम हुआ, देवता पराजित हो गये, उन्होने महा शक्ति की स्तुति की आदि शक्ति जगदंबा सिंह वाहिनी दुर्गा प्रगट हुई और उन्होंने नौ रूप धारण किया उनके साथ दस महाविद्या और अन्य सभी शक्तियाँ प्रगट हुई। दैत्यों के साथ पुनः महासंग्राम छिड गया | पांच हजार वर्ष तक लगातार युद्ध हुआ।

दैत्य अमरूवा के प्राण संकट में देख युद्ध छोडकर भागा। राह में देखता है कि किसी मृत गऊ के देह का पिंजर पडा है - उसे लगा कि इस पिंजर में शरण लूँ तो ये देव-देवी नजदीक ना आएंगे। अमरूवा उस पिजंर में समा गया। देवी शक्तियाँ पीछा करते वहाँ पर आयीं देखा शत्रु गौ के पिंजर में जा घुसा है, सभी ठिठक कर वहीँ खडी हो गयीं, मृत गौ का पिंजर अशुद्ध माना जाता है। इस अशुद्ध पिंजर से दैत्य को निकालना वह भी पिंजर में घुसकर असंभव है। बाहर निकाले बिना वध भी नहीं किया जा सकता ऐसी विषम स्थिति देवी शक्तियाँ मजबूरी में हाथ मलने लगी। हथेली पर हथेली की रगड से उर्जा उत्पन्न हुई और मैल के रूप में बाहर आयी।

श्री उमादेवी ने युक्ती लगाया और सारे मैल को एकत्र कर मूर्ति का रूप दिया। सभी देवी और देव मिलकर आदिशक्ति की स्तुती करने लगे। तत्काल उस मुर्ति से आदिशक्ति स्वयं हाथ में खंजर ले पांच वर्ष की कन्या के रूप में प्रगट हो गयी। और पूछा:

" हे माताओ मुझे बताओ - क्यों मेरा आवाहन किया "?

देवियों ने सारी व्यथा कह सुनाई और सारा माजरा समझकर देवीयों के इच्छा के अनुरूप वह कन्या गौ के पिंजर प्रवेश कर गयी यह देख आश्चर्य चकित हो दैत्य अमरुवा बाहर भागा और सायला सरोवर में जाकर कीड़े के रूप मे छिप गया।

कन्या ने भी सायला सरोवर में प्रवेश कर के दुष्ट दैत्य का वध कर दिया। सबने जय जयकार किया और अपने अपने धाम प्रस्थान किया।

किन्तु कन्या यदि स्वयं प्रगट होती तो काम निपटाकर लौट जाती। यहाँ तो उनकी रचना कर आह्वान किया गया था। अतः उन्होंने अपनी सृजनकर्ता उमियामाता को पकड़ा और अपना नाम धाम और काम पूछा।

उमिया ने उन्हें चामुण्डा के पास भेज दिया। सत्य हमेशा कसौटी पर कसा जाता है, सत्य की परीक्षा होती है। चामुण्डा ने उस अनाम कन्या को कामरूप कामाख्या विजय हेतु भेजा। चामुण्डा जानती थी कि कामाख्या तंत्र मंत्र जादू टोना और आसुरी शक्तियों की सिद्ध स्थली है। यदि ये वहाँ से विजयी होकर लौटती है तो इनकी वास्तविक शक्ति का आंकलन होगा। फिर उसी के अनुसार नाम धाम और काम सौंपा जा सकेगा।

कन्या ने कामरूप के द्वार पर लगे पहरे को ध्वस्त कर दिया। मुख्य पहरेदार नूरीया मसान को पराजित कर दिया। कामाख्या नगरी में प्रवेश के साथ देखा तंत्र मंत्र जादू टोना, काली विद्या माया के ढेर इन सबको समझने में ही अमूल्य समय जाया हो जायेगा। उन्होने सबको घोल बना कर बोतल में भर लिया।

भूत, प्रेत, जिन्न, मसान, मांत्रिक, तांत्रिक सभी दुष्टों को बकरा बना कर उस पर बैठकर हाथ में बोतल ले बाहर आ गयी।

जब चामुण्डा के पास पहॅुची तो देवता दानव सबने उनका जय घोष किया।

चामुण्डा ने कहा जिस विद्या का प्रयोग दूसरों को दुख देने के लिये होता है उसे मैली विद्या कहते हैं।

 तुमने उसी मैली विद्या पर विजय पायी है एवं समस्त शक्तियों के हस्त रगड़ से उत्पन्न मैल से तुम्हारी उत्पत्ति हुई इसलिये तुम्हारा नाम मेलडी माता होगा।

तुम्हारा स्वरुप कलियुग की महाशक्ति रूप के लिये हुआ है तुम कलियुग के विकार अर्थात मैल, काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह और मत्सर का नाश करने वाली शक्ति हो अतः सारा संसार तुम्हे श्री मेलडी माडी के रूप में पूजेगा। तुमने समस्त दुष्टों को बकरा बना दिया है अब यही तुम्हारा वाहन होगा। संस्कृत में बकरे का अज कहा जाता है।  अज का एक अर्थ ब्रह्माण्ड भी होता हैं। बकरे के ऊपर या ब्रह्माण्ड के भी ऊपर विराजने वाली आदि शक्ति हो। स्थाई रूप से सौराष्ट्र की भूमि तुम्हारा वास स्थान होगा।

परन्तु तात्विक रूप से समस्त देह धारीयों की जीवनी शक्ति के रूप सारी सृष्टि में तुम्हारा वास स्थान होगा। कलियुग में तुम बकरा वाली मेलडी माता के नाम से घर घर पूजी जाओगी।

वैसे तो मेलडी माता के मुख में ममता, नेत्रों मे करूणा है और हृदय में प्रेम है। वे अष्टभुजी रूप में दर्शन देती हैं। बकरे की सवारी है। आठों भुजाओं में अस्त्र - शस्त्र हैं जो निम्नवत कहे गए हैं।




एक में बोतल
दूसरे में खंजर
तीसरे में त्रिशुल
चौथे में तलवार
पांचवें में गदा
छठवें में चक्र
सातवें में कमल
आठवें में अभय की मुद्रा

Source: Google Search


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